सिया है ज़ख़्म-ए-बुलबुल गुल ने ख़ार और बोईगुलशन से
सूई तागा हमारे चाक-ए-दिल का है कहाँ देखें
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आज दिल बे-क़रार है मेरा
तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब
ग़ैर-ए-आह-ए-सर्द नहीं दाग़ों के जाने का इलाज
कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
तिरी वहशत की सरसर से उड़ा जूँ पात आँधी का
वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता
जब से दिलबर ने आँख फेरा है
ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के
सख़्त पिस्ताँ तिरे चुभे दिल में
मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ
कहा जो मैं ने गया ख़त से हाए तेरा हुस्न