पानी की मौजों पे लिक्खी है लम्हों की बे-रूह कहानी
क्या पाया है क्या खोया है मैं सदियों से खोज रहा हूँ
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मैं वक़्त के कोहराम में खो जाऊँ तो क्या ग़म
पलकें हैं कि सरगोशी में ख़ुश्बू का सफ़र है
होंटों के सहीफ़ों पे है आवाज़ का चेहरा
सिमटे रहे तो दर्द की तन्हाइयाँ मिलीं
कितनी हसीन लगती है चेहरों की ये किताब
तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ