कहीं भी राह-नुमा अब नज़र नहीं आता
मैं क्या बताऊँ कि हूँ कौन सी जिहात में गुम
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नुमायाँ जब वो अपने ज़ेहन की तस्वीर करता है
वसवसे दिल में न रख ख़ौफ़-ए-रसन ले के न चल
ग़म से निस्बत है जिन्हें ज़ब्त-ए-अलम करते हैं
हर इक इंसान के आमाल भी यकसाँ नहीं होते
नई हवा में कोई रंग-ए-काएनात में गुम
बाग़बाँ जश्न-ए-बहाराँ नहीं होने देते