है तेरे लिए सारा जहाँ हुस्न से ख़ाली
ख़ुद हुस्न अगर तेरी निगाहों में नहीं है
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असर देखा दुआ जब रात भर की
सुख में होता है हाफ़िज़ा बेकार
परेशानी है जी घबरा रहा है
चाँद
आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है
मुझे फ़र्दा की फ़िक्र क्यूँ-कर हो
वतन का राग
जब सफ़र 'अफ़सर' कभी करते नहीं
तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
यास है हसरत है ग़म है और शब-ए-दीजूर है
जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं