ख़्वाब के आगे शिकस्त-ए-ख़्वाब का था सामना
ये सफ़र था मरहला-दर-मरहला टूटा हुआ
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नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं
फिर बपा शहर में अफ़रातफ़री कर जाए
इक चादर-ए-बोसीदा मैं दोश पे रखता हूँ
हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा
मिसाल-ए-सैल-ए-बला न ठहरे हवा न ठहरे
तमीज़-ए-फ़र्ज़ंद-ए-अर्ज़-ओ-इब्न-ए-फ़लक न करना
पंजों के बल खड़े हुए शब की चटान पर
काया का कर्ब
इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया
हर किसी का हर किसी से राब्ता टूटा हुआ
लम्हा मुंसिफ़ भी है मुजरिम भी है मजबूरी का
कहीं सोता न रह जाऊँ सदा दे कर जगाओ ना