दिल जहाँ बात करे दिल ही जहाँ बात सुने
कार-ए-दुश्वार है उस तर्ज़ में कहना अच्छा
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तेरा पार उतरना कैसा
शाख़-ए-तन्हाई से फिर निकली बहार-ए-फ़स्ल-ए-ज़ात
इम्तिनाअ का महीना
इक इनआ'म के कितने नाम हैं
मक़्तल की बाज़दीद
नज़्म
तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो
मैं ग़ैर-महफ़ूज़ रात से डरता हूँ
उदास कोहसार के नौहे
इक हर्फ़-ए-फ़सुर्दा दाग़ में है
हिज्र इक हुस्न है इस हुस्न में रहना अच्छा