Ghazals of Akhtar Imam Rizvi

Ghazals of Akhtar Imam Rizvi
नामअख़तर इमाम रिज़वी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Imam Rizvi

वो ख़ुद तो मर ही गया था मुझे भी मार गया

जुर्म-ए-हस्ती की सज़ा क्यूँ नहीं देते मुझ को

जो संग हो के मुलाएम है सादगी की तरह

जीते-जी दुख सुख के लम्हे आते जाते रहते हैं

हर बुत यहाँ टूटे हुए पत्थर की तरह है

दुनिया भी पेश आई बहुत बे-रुख़ी के साथ

दिल वो प्यासा है कि दरिया का तमाशा देखे

चाँदनी के हाथ भी जब हो गए शल रात को

अश्क जब दीदा-ए-तर से निकला

अपना दुख अपना है प्यारे ग़ैर को क्यूँ उलझाओगे

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