Hope Poetry of Akhtar Muslimi

Hope Poetry of Akhtar Muslimi
नामअख़तर मुस्लिमी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Muslimi

सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए

देहात के बसने वाले तो इख़्लास के पैकर होते हैं

शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया

नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे

किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं

दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे

दरिया नज़र न आए न सहरा दिखाई दे

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