Sad Poetry of Akhtar Muslimi

Sad Poetry of Akhtar Muslimi
नामअख़तर मुस्लिमी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Muslimi

थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ

सुन के रूदाद-ए-अलम मेरी वो हँस कर बोले

मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार

मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं

लज़्ज़त-ए-दर्द मिली जुर्म-ए-मोहब्बत में उसे

ख़ुशी ही शर्त नहीं लुत्फ़-ए-ज़िंदगी के लिए

हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा

हाँ ये भी तरीक़ा अच्छा है तुम ख़्वाब में मिलते हो मुझ से

फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी

अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना

तुम अपनी ज़बाँ ख़ाली कर के ऐ नुक्ता-वरो पछताओगे

शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया

नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे

न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी

माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है

किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं

कहाँ जाएँ छोड़ के हम उसे कोई और उस के सिवा भी है

दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे

दरिया नज़र न आए न सहरा दिखाई दे

आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना

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