काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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दिल-ओ-दिमाग़ को रो लूँगा आह कर लूँगा
बस्ती की लड़कियों के नाम
बदनाम हो रहा हूँ
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं
तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ
ज़िंदगी कितनी मसर्रत से गुज़रती या रब
रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा
न भूल कर भी तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते
झूम कर बदली उठी और छा गई
मुझे ले चल
अश्क-बारी न मिटी सीना-फ़िगारी न गई