काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें
Habib Jalib
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ईद आई है ऐश-ओ-नोश का सामाँ कर
भुला बैठे हो हम को आज लेकिन ये समझ लेना
यारो कू-ए-यार की बातें करें
बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले
चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
उस के अहद-ए-शबाब में जीना
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
मुबारक मुबारक नया साल आया
अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं
थक गए हम करते करते इंतिज़ार
जन्नत का समाँ दिखा दिया है मुझ को
वक़्त की क़द्र