मुबारक मुबारक नया साल आया
ख़ुशी का समाँ सारी दुनिया पे छाया
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इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
वादा उस माह-रू के आने का
मुझे है ए'तिबार-ए-वादा लेकिन
मुझे ले चल
तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ
मुझे दोनों जहाँ में एक वो मिल जाएँ गर 'अख़्तर'
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले
अश्क-बारी न मिटी सीना-फ़िगारी न गई
न वो ख़िज़ाँ रही बाक़ी न वो बहार रही