मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन
आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(923) Peoples Rate This
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले
मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!
मुझे है ए'तिबार-ए-वादा लेकिन
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
किस को देखा है ये हुआ क्या है
चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
मिरी शाम-ए-ग़म को वो बहला रहे हैं
तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ
इक दिन की बात हो तो उसे भूल जाएँ हम
मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर
उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं