ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
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मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं
बरखा-रुत
चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
उस के अहद-ए-शबाब में जीना
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा
है क़यामत तिरे शबाब का रंग
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं