ग़ुबार-ए-शहर में उसे न ढूँड जो ख़िज़ाँ की शब
हवा की राह से मिला, हवा की राह पर गया
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हवा के तख़्त पर अगर तमाम उम्र तू रहा
कसे कजावे महमिलों के और जागा रात का तारा भी
रो चले चश्म से गिर्या की रियाज़त कर के
सर्द रातों की हवा में उड़ते पत्तों के मसील
बे-यक़ीन बस्तियाँ
धूप फैली तो कहा दीवार ने झुक कर मुझे
सफ़ीर-ए-लैला-2
किसी का साया रह गया गली के ऐन मोड़ पर
सुर्मा हो या तारा
अज़ल के क़िस्सा-गो ने दिल की जो उतारी दास्ताँ
अम्न-क़रियों की शफ़क़-फ़ाम सुनहरी चिड़ियाँ
आसमाँ के रौज़नों से लौट आता था कभी