आसमाँ के रौज़नों से लौट आता था कभी
वो कबूतर इक हवेली के छजों में खो गया
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आधे पेड़ पे सब्ज़ परिंदे आधा पेड़ आसेबी है
सफ़ीर-ए-लैला-1
मुसीबत की ख़बरें
चाँदी वाले, शीशे वाले, आँखों वाले शहर में
सफ़ीर-ए-लैला-4
रह-ज़नी ख़ूब नहीं ख़्वाजा-सराओं के लिए
वो शख़्स अमर है, जो पीवेगा दो चाँदों के नूर
मुख़्तसर बात थी, फैली क्यूँ सबा की मानिंद
चरवाहे का जवाब
नौहा
प्यासा ऊँट
हिजाब आ गया था मुझ को दिल के इज़्तिराब पर