जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत पे हूँ निसार
बुत को बिठा के सामने याद-ए-ख़ुदा करूँ
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उलझा दिल-ए-सितम-ज़दा ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से आज
किस तरह 'अमानत' न रहूँ ग़म से मैं दिल-गीर
रूह को राह-ए-अदम में मिरा तन याद आया
ज़मज़मा किस की ज़बाँ पर ब-दिल-ए-शाद आया
आग़ोश में जो जल्वागर इक नाज़नीं हुआ
सुब्ह-ए-विसाल-ए-ज़ीस्त का नक़्शा बदल गया
बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब
लुत्फ़ अब ज़ीस्त का ऐ गर्दिश-ए-अय्याम नहीं
दिखलाए ख़ुदा उस सितम-ईजाद की सूरत
गिर पड़े दाँत हुए मू-ए-सर ऐ यार सफ़ेद
ख़ाना-ए-ज़ंजीर का पाबंद रहता हूँ सदा