रेत है सूरज है वुसअत है तन्हाई
लेकिन नाँ इस दिल की ख़ाम-ख़याली जाए
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
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Anwar Masood
Mir Taqi Mir
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बहुत बे-ज़ार होती जा रही हूँ
जंगल
हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे
इंतिसाब
जो रही सो बे-ख़बरी रही
मिरी आँखों में मंज़र धुल रहा था
चाँद उभरेगा तो फिर हश्र दिखाई देगा
'क़ुर्रतुल-ऐन-हैदर'
खिड़की
जहाँ मैं खड़ी थी
सर-ए-मिज़्गाँ
कोई एहसास मुकम्मल नहीं रहने देता