हल्का सब्ज़ा था जब याँ आई थी
अब तो जंगल में फँस गई हो तुम
इश्क़ मुझ से कोई मज़ाक़ नहीं
जान दलदल में धँस गई हो तुम
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दिया जलाएगी तू और मैं बुझाऊँगा
गो हो गया है तुम को रुख़्सत हुए ज़माना
मुझ को फ़ुर्क़त से गुज़ारा जाएगा
मैं अब उक्ता गया हूँ फुर्क़तों से
नई क़ुर्बत में खो रही हो तुम
आख़िरी ख़त मुझे मिला तेरा
तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,
गिला तिरे फ़िराक़ का जो आज-कल नहीं रहा
हर किसी के लिए दुआ करना
तो मिरी ज़िंदगी बनोगी तुम
दिल टूटा तो क्या से क्या नुक़सान हुआ