बे-महाबा हो अगर हुस्न तो वो बात कहाँ
छुप के जिस शान से होता है नुमायाँ कोई
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इश्क़ की बेताबियों पर हुस्न को रहम आ गया
रक़्स-ए-मस्ती देखते जोश-ए-तमन्ना देखते
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
इश्क़ है इक कैफ़-ए-पिन्हानी मगर रंजूर है
एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
रिंद जो ज़र्फ़ उठा लें वही साग़र बन जाए
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
क्या मस्तियाँ चमन में हैं जोश-ए-बहार से
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
दास्ताँ उन की अदाओं की है रंगीं लेकिन
न खुले उक़्दा-हा-ए-नाज़-ओ-नियाज़