यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
जहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है
Gulzar
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मय-ए-बे-रंग का सौ रंग से रुस्वा होना
हुस्न को वुसअतें जो दीं इश्क़ को हौसला दिया
मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में
जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
आरिज़-ए-नाज़ुक पे उन के रंग सा कुछ आ गया
बिस्तर-ए-ख़ाक पे बैठा हूँ न मस्ती है न होश
यूँ मुस्कुराए जान सी कलियों में पड़ गई
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
न ये शीशा न ये साग़र न ये पैमाना बने
सामने उन के तड़प कर इस तरह फ़रियाद की
वहीं से इश्क़ ने भी शोरिशें उड़ाई हैं