वहीं से इश्क़ ने भी शोरिशें उड़ाई हैं
जहाँ से तू ने लिए ख़ंदा-हा-ए-ज़ेर-ए-लबी
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रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स में
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
मय-ए-बे-रंग का सौ रंग से रुस्वा होना
सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया
आशोब-ए-हुस्न की भी कोई दास्ताँ रहे
छुट जाए अगर दामन-ए-कौनैन तो क्या ग़म
ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
क्या क्या हैं दर्द-ए-इश्क़ की फ़ित्ना-तराज़ियाँ
नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ
शिकवा न चाहिए कि तक़ाज़ा न चाहिए
जीना भी आ गया मुझे मरना भी आ गया
गर्म-ए-तलाश-ओ-जुस्तुजू अब है तिरी नज़र कहाँ