रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स में
जैसे कभी आँखों से गुलिस्ताँ नहीं देखा
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1247) Peoples Rate This
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ
इश्वों की है न उस निगह-ए-फ़ित्ना-ज़ा की है
तिरे जल्वों के आगे हिम्मत-ए-शरह-ओ-बयाँ रख दी
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
आरिज़-ए-नाज़ुक पे उन के रंग सा कुछ आ गया
हल कर लिया मजाज़ हक़ीक़त के राज़ को
ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है
मैं क्या कहूँ कहाँ है मोहब्बत कहाँ नहीं
ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
मता-ए-ज़ीस्त क्या हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं
रिंद जो ज़र्फ़ उठा लें वही साग़र बन जाए