ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है
ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है
क़तरे में समुंदर है ज़र्रे में बयाबाँ है
है इश्क़ कि महशर में यूँ मस्त ओ ख़िरामाँ है
दोज़ख़ ब-गरेबाँ है फ़िरदौस ब-दामाँ है
है इश्क़ की शोरिश से रानाई ओ ज़ेबाई
जो ख़ून उछलता है वो रंग-ए-गुलिस्ताँ है
फिर गर्म-ए-नवाज़िश है ज़ौ मेहर-ए-दरख़्शाँ की
फिर क़तरा-ए-शबनम में हंगामा-ए-तूफ़ाँ है
ऐ पैकर-ए-महबूबी मैं किस से तुझे देखूँ
जिस ने तुझे देखा है वो दीदा-ए-हैराँ है
सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया
जब आँख खुली देखा अपना ही गरेबाँ है
इक शोरिश-ए-बे-वस्ल इक आतिश-ए-बे-पर्दा
आफ़त-कदा-ए-दिल में अब कुफ़्र न ईमाँ है
धोका है ये नज़रों का बाज़ीचा है लज़्ज़त का
जो कुंज क़फ़स में था वो अस्ल गुलिस्ताँ है
इक ग़ुंचा-ए-अफ़्सुर्दा ये दिल की हक़ीक़त थी
ये मौजज़नी ख़ूँ की रंगीनी-ए-पैकाँ है
ये हुस्न की मौजें हैं या जोश-ए-तबस्सुम है
उस शोख़ के होंटों पर इक बर्क़ सी लर्ज़ां है
'असग़र' से मिले लेकिन 'असग़र' को नहीं देखा
अशआर में सुनते हैं कुछ कुछ वो नुमायाँ है
(891) Peoples Rate This