मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे
मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं
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तू एक नाम है मगर सदा-ए-ख़्वाब की तरह
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में
मय-ए-बे-रंग का सौ रंग से रुस्वा होना
गुम कर दिया है दीद ने यूँ सर-ब-सर मुझे
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
उस जल्वा-गाह-ए-हुस्न में छाया है हर तरफ़
वो शोरिशें निज़ाम-ए-जहाँ जिन के दम से है
यूँ न मायूस हो ऐ शोरिश-ए-नाकाम अभी
इश्क़ की बेताबियों पर हुस्न को रहम आ गया
सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया