सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया
जब आँख खुली देखा अपना ही गरेबाँ है
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(834) Peoples Rate This
ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ
माइल-ए-शेर-ओ-ग़ज़ल फिर है तबीअत 'असग़र'
मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में
न खुले उक़्दा-हा-ए-नाज़-ओ-नियाज़
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
दास्ताँ उन की अदाओं की है रंगीं लेकिन
पास-ए-अदब में जोश-ए-तमन्ना लिए हुए
मिरी वहशत पे बहस-आराइयाँ अच्छी नहीं ज़ाहिद
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी
बिस्तर-ए-ख़ाक पे बैठा हूँ न मस्ती है न होश