माइल-ए-शेर-ओ-ग़ज़ल फिर है तबीअत 'असग़र'
अभी कुछ और मुक़द्दर में है रुस्वा होना
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मिरी वहशत पे बहस-आराइयाँ अच्छी नहीं ज़ाहिद
सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया
उस जल्वा-गाह-ए-हुस्न में छाया है हर तरफ़
क्या मस्तियाँ चमन में हैं जोश-ए-बहार से
एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
आरिज़-ए-नाज़ुक पे उन के रंग सा कुछ आ गया
गर्म-ए-तलाश-ओ-जुस्तुजू अब है तिरी नज़र कहाँ
पास-ए-अदब में जोश-ए-तमन्ना लिए हुए
कौन था उस के हवा-ख़्वाहों में जो शामिल न था
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
ये नंग-ए-आशिक़ी है सूद ओ हासिल देखने वाले
सिर्फ़ इक सोज़ तो मुझ में है मगर साज़ नहीं