पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
हम आज तक वो चोट हैं दिल पर लिए हुए
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नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ
वहीं से इश्क़ ने भी शोरिशें उड़ाई हैं
शिकवा न चाहिए कि तक़ाज़ा न चाहिए
'असग़र' हरीम-ए-इश्क़ में हस्ती ही जुर्म है
मिरी वहशत पे बहस-आराइयाँ अच्छी नहीं ज़ाहिद
पास-ए-अदब में जोश-ए-तमन्ना लिए हुए
गर्म-ए-तलाश-ओ-जुस्तुजू अब है तिरी नज़र कहाँ
ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
आशोब-ए-हुस्न की भी कोई दास्ताँ रहे
मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी