मेरी तरफ़ से ख़ातिर-ए-सय्याद जमा है
क्या उड़ सकेगा ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर कहीं
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अबस अबस तुझे मुझ से हिजाब आता है
मुझ से जो पूछते हो तो हर हाल शुक्र है
बहार आई है सोते को टुक जगा देना
डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे
अगर आशिक़ कोई पैदा न होता
ख़ून आँखों से निकलता ही रहा
अक्स भी कब शब-ए-हिज्राँ का तमाशाई है
ऐ तजल्ली क्या हुआ शेवा तिरी तकरार का
आलम में अगर इश्क़ का बाज़ार न होता
देखिए ख़ाक में मजनूँ की असर है कि नहीं
जुगनू मियाँ की दुम जो चमकती है रात को
ऐ शैख़ अगर कुफ़्र से इस्लाम जुदा है