कब दर्द से दिल को ताब आया
आँखों में कहाँ से ख़्वाब आया
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मेरी तरफ़ से ख़ातिर-ए-सय्याद जमा है
जुगनू मियाँ की दुम जो चमकती है रात को
ख़ून आँखों से निकलता ही रहा
हरगिज़ मिरा वहशी न हुआ राम किसी का
दिल-बस्तगी क़फ़स से यहाँ तक हुई मुझे
दिल धड़कता है कि तू यार है सौदाई का
आलम में अगर इश्क़ का बाज़ार न होता
हैफ़ दिल में तिरे वफ़ा न हुई
ऐ तजल्ली क्या हुआ शेवा तिरी तकरार का
इस जौर ओ जफ़ा से तिरे ज़िन्हार न टूटे
बस-कि दीदार तिरा जल्वा-ए-क़ुद्दूसी है