दिल-बस्तगी क़फ़स से यहाँ तक हुई मुझे
गोया कभी चमन में मेरा आशियाँ न था
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बस-कि दीदार तिरा जल्वा-ए-क़ुद्दूसी है
ऐ शैख़ अगर कुफ़्र से इस्लाम जुदा है
डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे
कब दर्द से दिल को ताब आया
अक्स भी कब शब-ए-हिज्राँ का तमाशाई है
ऐ तजल्ली क्या हुआ शेवा तिरी तकरार का
हरगिज़ मिरा वहशी न हुआ राम किसी का
जुगनू मियाँ की दुम जो चमकती है रात को
मेरी तरफ़ से ख़ातिर-ए-सय्याद जमा है
बहार आई है सोते को टुक जगा देना
ख़ून आँखों से निकलता ही रहा
हैफ़ दिल में तिरे वफ़ा न हुई