तेरे कूचे में नक़्श-ए-पा की तरह
ऐसे बैठे कि फिर न वाँ से गए
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जिस दिन से यार मुझ से वो शोख़ आश्ना हुआ
क़ासिद तो लिए जाता है पैग़ाम हमारा
मिलते ही नज़र दिल को मिलाया नहीं जाता
जिस घड़ी तेरे आस्ताँ से गए
इस अदा से मुझे सलाम किया
जब से मेरे दिल में आ कर इश्क़ का थाना हुआ
ग़ैर पर लुत्फ़ करे हम पे सितम या क़िस्मत
हम ने क़िस्सा बहुत कहा दिल का
सबा कहियो ज़बानी मेरी टुक उस सर्व-क़ामत को
पूछते क्या हो मिरे तुम दिल-ए-दीवाने से
दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल
सीने में दाग़ है तपिश-ए-इंतिज़ार का