जिस घड़ी तेरे आस्ताँ से गए
हम ने जाना कि दो जहाँ से गए
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दिल दिया जी दिया ख़फ़ा न किया
फ़ाएदा क्या है नसीहत से फिरे हो नासेह
इस अदा से मुझे सलाम किया
किस क़दर दर्द के शब करता था मज़कूर तिरा
शक्ल उस की किसी सूरत से जो दिखलाए हमें
फबा है रुख़ पे तिरे ख़ुश-नुमा सनम लेकिन
ये न आने के बहाने हैं सभी वर्ना मियाँ
दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल
मिलते ही नज़र दिल को मिलाया नहीं जाता
जिस दम तिरे कूचे से हम आन निकलते हैं
क्या फ़ाश करूँ ग़म-ए-निहाँ को
सीने में दाग़ है तपिश-ए-इंतिज़ार का