फ़ाएदा क्या है नसीहत से फिरे हो नासेह
हम समझने के नहीं लाख तू समझाए हमें
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क़ासिद तो लिए जाता है पैग़ाम हमारा
जिस दम तिरे कूचे से हम आन निकलते हैं
ये अश्क चश्मों में हमदम रहे रहे न रहे
कहता है बहुत कुछ वो मुझे चुपके ही चुपके
जो शमशीर तेरी अलम देखते हैं
जिस घड़ी तेरे आस्ताँ से गए
मिलते ही नज़र दिल को मिलाया नहीं जाता
हम इश्क़ के बंदे हैं मज़हब से नहीं वाक़िफ़
तालिब हो वहाँ आन के क्या कोई सनम का
हम ने क़िस्सा बहुत कहा दिल का