जिस घड़ी तेरे आस्ताँ से गए
जिस घड़ी तेरे आस्ताँ से गए
हम ने जाना कि दो जहाँ से गए
तेरे कूचे में नक़्श-ए-पा की तरह
ऐसे बैठे कि फिर न वाँ से गए
शम्अ की तरह रफ़्ता रफ़्ता हम
ऐसे गुज़रे कि जिस्म ओ जाँ से गए
एक दिन मैं ने यार से ये कहा
अब तो हम ताक़त-ओ-तवाँ से गए
हँस के बोला कि सुन ले ऐ 'आसिफ़'
यही कह कह के लाखों जाँ से गए
(851) Peoples Rate This