कहता है बहुत कुछ वो मुझे चुपके ही चुपके
ज़ाहिर में ये कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता
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दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल
फ़ाएदा क्या है नसीहत से फिरे हो नासेह
मर गया ग़म में तिरे हाए में रोता रोता
हम इश्क़ के बंदे हैं मज़हब से नहीं वाक़िफ़
बिस्मिल किसी को रखना रस्म-ए-वफ़ा नहीं है
नामा तिरा मैं ले कर मुँह देख रह गया था
फबा है रुख़ पे तिरे ख़ुश-नुमा सनम लेकिन
पूछते क्या हो मिरे तुम दिल-ए-दीवाने से
मिलते ही नज़र दिल को मिलाया नहीं जाता
जब से मेरे दिल में आ कर इश्क़ का थाना हुआ
ग़ैर पर लुत्फ़ करे हम पे सितम या क़िस्मत