ये आना कोई आना है कि बस रस्मन चले आए
ये मिलना ख़ाक मिलना है कि दिल से दिल नहीं मिलता
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लखनऊ
ये तीरगी-ए-शब ही कुछ सुब्ह-तराज़ आती
अक़्ल की सतह से कुछ और उभर जाना था
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम
आज भी
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
वतन-आशोब
नज़्र-ए-अलीगढ़
कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
करिश्मा-साजी-ए-दिल देखता हूँ
नौ-जवान ख़ातून से
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए