मैं तेरे क़रीब आते आते
कुछ और भी दूर हो गया हूँ
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फ़र्ज़ानों की इस बस्ती में एक अजब सौदाई है
फिर कोई नया ज़ख़्म नया दर्द अता हो
वो दौर क़रीब आ रहा है
ये धूप तो हर रुख़ से परेशाँ करेगी
सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ
लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ
'अतहर' तुम ने इश्क़ किया कुछ तुम भी कहो क्या हाल हुआ
साया मेरा साया वो