आने वाले कल की ख़ातिर हर हर पल क़ुर्बान किया
हाल को दफ़ना देते हैं हम जीने की तय्यारी में
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कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में
ख़्वाब-जंगल
हार-सिंगार
उन्हें मुझ से शिकायत है
फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको
सुब्ह के दो मंज़र
किसी ख़याल की हिद्दत से जलना चाहती हूँ
मो'तबर से रिश्तों का साएबान रहने दो
हक़ीक़तें तो मिरे रोज़ ओ शब की साथी हैं
अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना