जवाब सोच के वो दिल में मुस्कुराते हैं
अभी ज़बान पे मेरी सवाल भी तो न था
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हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है
बेताब रहें हिज्र में कुछ दिल तो नहीं हम
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता
कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
क़यामत है तिरी उठती जवानी
तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या
अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं
मिला के ख़ाक में सर्मा-ए-दिल-ए-'बेख़ुद'
हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
आइना देख के ख़ुर्शीद पे करते हैं नज़र
पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी