ख़ौफ़ ग़र्क़ाब हो गया 'फ़ैसल'
अब समुंदर पे चल रहा हूँ मैं
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(947) Peoples Rate This
हिज्र मौजूद है फ़साने में
किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे
कभी भुलाया कभी याद कर लिया उस को
आज फिर आईना देखा है कई साल के बाद
ये भी नहीं कि दस्त-ए-दुआ तक नहीं गया
उस ने देखा जो मुझे आलम-ए-हैरानी में
मैं ज़ख़्म खा के गिरा था कि थाम उस ने लिया
दुख नहीं है कि जल रहा हूँ मैं
रोज़ आसेब आते जाते हैं
रख़्त-ए-सफ़र है इस में क़रीना भी चाहिए
चंद ख़ुशियों को बहम करने में
कभी देखा ही नहीं इस ने परेशाँ मुझ को