कभी भुलाया कभी याद कर लिया उस को
ये काम है तो बहुत मुझ से काम उस ने लिया
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'फ़ैसल' मुकालिमा था हवाओं का फूल से
उस ने देखा जो मुझे आलम-ए-हैरानी में
हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है
आज फिर आईना देखा है कई साल के बाद
इन लोगों में रहने से हम बेघर अच्छे थे
आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
जिस्म थकता नहीं चलने से कि वहशत का सफ़र
टूटता है तो टूट जाने दो
रात सितारों वाली थी और धूप भरा था दिन
दुख नहीं है कि जल रहा हूँ मैं
अब वो तितली है न वो उम्र तआ'क़ुब वाली
हर शख़्स परेशान है घबराया हुआ है