अब वो तितली है न वो उम्र तआ'क़ुब वाली
मैं न कहता था बहुत दूर न जाना मिरे दोस्त
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हिज्र मौजूद है फ़साने में
तेरी आँखें न रहीं आईना-ख़ाना मिरे दोस्त
अदावतों में जो ख़ल्क़-ए-ख़ुदा लगी हुई है
इन लोगों में रहने से हम बेघर अच्छे थे
हर शख़्स परेशान है घबराया हुआ है
दुख नहीं है कि जल रहा हूँ मैं
मैं ज़ख़्म खा के गिरा था कि थाम उस ने लिया
कभी देखा ही नहीं इस ने परेशाँ मुझ को
'फ़ैसल' मुकालिमा था हवाओं का फूल से
ये भी नहीं कि दस्त-ए-दुआ तक नहीं गया
चंद ख़ुशियों को बहम करने में