Ghazal Poetry (page 461)
न अब वो ख़ुश-नज़री है न ख़ुश-ख़िसाली है
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
मिसाल-ए-अक्स कुंज-ए-ज़ात से बाहर रहा हूँ मैं
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
क्यूँ ख़ल्वत-ए-ग़म में रहते हो क्यूँ गोशा-नशीं बेकार हुए
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
क्यूँ ख़ल्वत-ए-ग़म में रहते हो क्यूँ गोशा-नशीं बेकार हुए
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
कुछ इस तरह से तेरा ग़म दिए जलाता था
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
कोई दिल तो नहीं है कि ठहर जाएगा
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
कभी पैग़ाम-ए-सुकूँ तेरी नज़र ने न दिया
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
काम कुछ आ न सकी रस्म-ए-शनासाई भी
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
जाने वाला जो कभी लौट के आया होगा
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
हम पे तन्हाई में कुछ ऐसे भी लम्हे आए
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
हुजूम-ए-हम-नफसाँ चारा-ए-अलम न हुआ
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
गुज़र गए हैं जो दिन उन को याद करना क्या
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ग़म ही ले दे के मिरी दौलत-ए-बेदार नहीं
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
दहर को लम्हा-ए-मौजूद से हट कर देखें
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
चेहरा तो चमक दमक रहा है
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ऐ मुश्फ़िक़-ए-मन इस हाल में तुम किस तरह बसर फ़रमाओगे
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ज़ुल्मात-ए-शब-ए-हिज्र की आफ़ात है और तू
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ज़ुल्फ़ों का बिखरना इक तो बला, आरिज़ की झलक फिर वैसी ही
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ज़ुल्फ़ अगर दिल को फँसा रखती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ये जो अपने हाथ में दामन सँभाले जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ये आँखें हैं तो सर कटा कर रहेंगी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
या-रब मिरी उस बुत से मुलाक़ात कहीं हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
या-रब आबाद होवें घर सब के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यार हैं चीं-बर-जबीं सब मेहरबाँ कोई नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यक नाला-ए-आशिक़ाना है याँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यादगार-ए-गुज़िश्तगाँ हैं हम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी