Ghazal Poetry (page 2)
चले हैं साथ हम अंजान हो कर
फ़रह शाहिद
तिरी शबीह को लिक्खा है रंग-ओ-बू मैं ने
एहतिमाम सादिक़
देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं
एहतिमाम सादिक़
नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग
एहतिमाम सादिक़
तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं
तरुणा मिश्रा
बात में कुछ मगर बयान में कुछ
फ़ारूक़ इंजीनियर
वो निशाना भी ख़ता जाता तो बेहतर होता
अब्दुल्लाह कमाल
भली हो या कि बुरी हर नज़र समझता है
अतुल अजनबी
जो महका रहे तेरी याद सुहानी में
बीना गोइंदी
चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद
अहमद नदीम क़ासमी
रंग के गहरे थे लेकिन दूर से अच्छे लगे
आज़ाद हुसैन आज़ाद
शबाब आ गया उस पर शबाब से पहले
ए जी जोश
किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना
महमूद शाम
कितने में बनती है मोहर ऐसी
अहमद जावेद
कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता
अख़्तर हाशमी
चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला
अनवर अंजुम
वो चाँद था बादलों में गुम था
असरार ज़ैदी
तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना
आमिर अमीर
हर-सम्त ताज़गी सी झरनों की नग़्मगी से कितनी
जाफ़र रज़ा
गुल-ओ-गुलज़ार गुहर चाँद सितारे बच्चे
फ़ारूक़ इंजीनियर
इक उम्र से जिस को लिए फिरता हूँ नज़र में
अहमद फ़ाख़िर
सीने में दिल जो दर्द का मारा नहीं मिला
अहमद फ़ाख़िर
उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना
ज़ुबैर शिफ़ाई
कभी जो नूर का मज़हर रहा है
अली अकबर अब्बास
कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया
अनवर अंजुम
ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है
शौक़ मुरादाबादी
देखे-भाले रस्ते थे
असरार ज़ैदी
बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
तुम्हारे लब पे नाम आया हमारा
अमित सतपाल तनवर
गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी