Ghazal Poetry (page 918)
जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो
आले रज़ा रज़ा
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
आले रज़ा रज़ा
हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
आले रज़ा रज़ा
अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता
आले रज़ा रज़ा
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
आल-ए-अहमद सूरूर
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है
आल-ए-अहमद सूरूर
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
आल-ए-अहमद सूरूर
वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे
आल-ए-अहमद सूरूर
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
आल-ए-अहमद सूरूर
शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई
आल-ए-अहमद सूरूर
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
आल-ए-अहमद सूरूर
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
आल-ए-अहमद सूरूर
लोग तन्हाई का किस दर्जा गिला करते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
लो अँधेरों ने भी अंदाज़ उजालों के लिए
आल-ए-अहमद सूरूर
कुछ लोग तग़य्युर से अभी काँप रहे हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर
जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आल-ए-अहमद सूरूर
जब्र-ए-हालात का तो नाम लिया है तुम ने
आल-ए-अहमद सूरूर
जब कभी बात किसी की भी बुरी लगती है
आल-ए-अहमद सूरूर
हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे
आल-ए-अहमद सूरूर
हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए
आल-ए-अहमद सूरूर
हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सूरूर
हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है
आल-ए-अहमद सूरूर
ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया
आल-ए-अहमद सूरूर