Ghazal Poetry (page 919)

फ़ुग़ान-ए-दर्द में भी दर्द की ख़लिश ही नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

एक दीवाने को इतना ही शरफ़ क्या कम है

आल-ए-अहमद सूरूर

दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें

आल-ए-अहमद सूरूर

दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गई

आल-ए-अहमद सूरूर

आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी

आल-ए-अहमद सूरूर

वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई

आग़ा अकबराबादी

तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ

आग़ा अकबराबादी

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया

आग़ा अकबराबादी

पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा

आग़ा अकबराबादी

नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

निगाहों में इक़रार सारे हुए हैं

आग़ा अकबराबादी

नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ

आग़ा अकबराबादी

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त

आग़ा अकबराबादी

मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे

आग़ा अकबराबादी

मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब

आग़ा अकबराबादी

मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का

आग़ा अकबराबादी

क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव

आग़ा अकबराबादी

ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा

आग़ा अकबराबादी

जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है

आग़ा अकबराबादी

जा लड़ी यार से हमारी आँख

आग़ा अकबराबादी

हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

दिल में तिरे ऐ निगार क्या है

आग़ा अकबराबादी

दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और

आग़ा अकबराबादी

चाहत ग़म्ज़े जता रही है

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

आँखों पे वो ज़ुल्फ़ आ रही है

आग़ा अकबराबादी

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