Ghazal Poetry (page 3)
वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा
अनवर अंजुम
ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में
अमित सतपाल तनवर
हक़ीक़त है कि नन्हा सा दिया हूँ
वलीउल्लाह वली
तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ
ज़ुबैर शिफ़ाई
चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है
रश्मि सबा
बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए
अख़्तर सईद ख़ान
मज़ाक़ सहना नहीं है हँसी नहीं करनी
स्वप्निल तिवारी
मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई
अहमद मुश्ताक़
ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
आरिफ़ अब्दुल मतीन
जब से पड़ी है उन से मुलाक़ात की तरह
अनवर अंजुम
हर मुलाक़ात में लगते हैं वो बेगाने से
ए जी जोश
कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है
सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से
अहमद फ़ाख़िर
गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा
आज़ाद हुसैन आज़ाद
कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा
ए जी जोश
किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द
महमूद शाम
जिस के दिल में कोई अरमान नहीं होता है
अख़्तर आज़ाद
क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए
एहतिशाम हुसैन
सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में
अब्दुल्लाह कमाल
पहले-पहल लड़ेंगे तमस्ख़ुर उड़ाएँगे
अली ज़रयून
प्यार के खट्टे-मीठे नामे वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ
बशीर दादा
दिल में वीरानियाँ सिसकती हैं
अनवर ख़लील
न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए
ऐन सलाम
हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं
अख़्तर हाशमी
ज़ख़्म के होंट पर लुआब उस का
अक़ील अब्बास
मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे
महमूद शाम
लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया
नसीम शेख़
कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया
वफ़ा नक़वी
था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द
अहमद अली बर्क़ी आज़मी