Ghazal Poetry (page 4)

ख़ुद अपने ख़ून में पहले नहाया जाता है

वरुन आनन्द

झाँकते लोग खुले दरवाज़े

महमूद शाम

आकाश पे बादल छाए थे

बीना गोइंदी

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

सितम कब उन पे ढाया है किसी ने

जावेद सिद्दीक़ी आज़मी

ज़ुल्म हद से गुज़रता रहा

जावेद सिद्दीक़ी आज़मी

मस्जिद-ओ-मंदिर का यूँ झगड़ा मिटाना चाहिए

अख़्तर आज़ाद

सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं

अज़्म शाकरी

तस्वीर तेरी यूँ ही रहे काश जेब में

आमिर अमीर

क्या मैं जुगनू को आफ़्ताब करूँ

तरुणा मिश्रा

ज़िंदगी होने का दुख सहने में है

अर्श सिद्दीक़ी

नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम

अनवर शऊर

नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले

हनीफ़ राही

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

शुआएँ ऐसे मिरे जिस्म से गुज़रती गईं

अली अकबर अब्बास

रफ़्तार-ए-तेज़-तर का भरम टूटने लगे

शोएब निज़ाम

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

रौशनी के सिलसिले ख़्वाबों में ढल कर रह गए

असरार ज़ैदी

जो सकूँ न रास आया तो मैं ग़म में ढल रहा हूँ

अख़्तर आज़ाद

प्यार का यूँ दस्तूर निभाना पड़ता है

वलीउल्लाह वली

कई अँधेरों के मिलने से रात बनती है

तरकश प्रदीप

चाँद तारे जिसे हर शब देखें

अनवर अंजुम

अब तक तो यही पता नहीं है

बिमल कृष्ण अश्क

एक तो इश्क़ की तक़्सीर किए जाता हूँ

नईम गिलानी

दिल से अरमाँ निकल रहे हैं

अख़्तर सईद

हम को ख़ुलूस-ए-दिल का किसी ने सिला दिया है

अनवर ख़लील

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

जी बहलता ही नहीं ख़ाली क़फ़स से

स्वप्निल तिवारी

मैं रस्ते में जहाँ ठहरा हुआ था

वफ़ा नक़वी

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