Ghazal Poetry (page 5)
हादसे उम्र-भर आज़माते रहे
देवेश दिक्षित
रोने वालों ने तिरे ग़म को सराहा ही नहीं
बिमल कृष्ण अश्क
सामाँ तो बेहद है दिल में
अनवर शऊर
हवा ही लौ को घटाती वही बढ़ाती है
अमजद इस्लाम अमजद
तिरी तलाश तिरी जुस्तुजू उतरती है
हनीफ़ राही
जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था
हम ही ज़र्रे रुस्वाई से
ए जी जोश
सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत
अज़्म शाकरी
ग़ुरूब होते हुए सूरजों के पास रहे
वफ़ा नक़वी
हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए
नईम गिलानी
तुम सर्वत को पढ़ती हो
अली ज़रयून
इश्क़ को आँख में जलते देखा
नजमा शाहीन खोसा
बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू
हबीब जालिब
अफ़्सूँ पहली बारिश का
मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी
देख कर वहशत निगाहों की ज़बाँ बेचैन है
गौतम राजऋषि
किसी के नाम को लिखते हुए मिटाते हुए
रश्मि सबा
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
हबीब जालिब
कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
बे-बसर आफ़ात से तकलीफ़ होती है मुझे
बशीर दादा
रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं
अर्श सिद्दीक़ी
मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई
नईम गिलानी
मौसम हो कोई याद के खे़मे नहीं उठते
वफ़ा नक़वी
आख़िर हम ने तौर पुराना छोड़ दिया
अर्श सिद्दीक़ी
यूँ पाबंद-ए-सलासिल हो कर कौन फिरे बाज़ारों में
असरार ज़ैदी
इश्क़ से इज्तिनाब कर लेना
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
चाँदनी-रात में बुलाऊँ तुझे
बीना गोइंदी
आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से
आदिल मंसूरी
इमारत हो कि ग़ुर्बत बोलती है
वलीउल्लाह वली
देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे
संजय मिश्रा शौक़
सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर
फ़ारूक़ इंजीनियर